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दर्द की गूंज



.........दर्द की गूंज.......

मिले हैं दर्द बेशुमार इतने 
कि अब दर्द को भी दर्द से छांटना मुमकिन नहीं होता
नए दर्द की भी बात क्या करें  
उसे भी पुराने मे शामिल होने मे मुश्किल नहीं होता

कुछ लोग कहते हैं 
अपनी कमियों को भी
ढूंढ लिया करो
मगर यही आलम 
उनपर भी अमल मे क्यों नही होता

नजर फिसलती है और पर
दिमाग भी चलता है और पर
कुंद हो जाती है समझ क्यों
बात आती है जब खुद पर
माना ,की गलत है जमाना
मगर अलग कहां है 
आपका भी ठिकाना 
तब सही आप और गलत हम कैसे

अब ताज्जुब भी नही होता
किसी की अनदेखी या
बेगानेपन से
जानता हूं ,इस भीड़ के माहौल मे
हर कोई खुद को बचाए रखने की ही
जद्दोजहद मे मशगूल है
किसी के दर्द की गूंज
कानों तक नही पहुंचती
........................
मोहन तिवारी ,मुंबई


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1 Comments

Gunjan Kamal

03-Dec-2023 06:35 PM

👌

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